Collective Sarhul Samiti performed Sarhul Puja in UrimariCollective Sarhul Samiti performed Sarhul Puja in Urimari

मानव जाति और प्रकृति के अटूट संबंध का प्रतीक है सरहुल: संजीव बेदिया

बड़़कागांव: सामूहिक सरहुल समिति उरीमारी द्वारा पोटंगा पंचायत के जरजरा स्थित सरना स्थल में सरहुल पूजा शुक्रवार को मनाया गया। पाहन हेजरा बेदिया ने सखुआ वृक्ष के नीचे प्राकृतिक देवी देवता को विधिवत गुड़, अरवा चावल, महुआ फूल, सखुआ फूल चढ़ाते हुए समस्त मानव जाति के कल्याण हेतु और प्रकृति की संरक्षण के लिए प्रार्थना व पूजा किया।

इसके उपरांत मुख्य अतिथि झामुमो के केंद्रीय सचिव संजीव बेदिया, सामूहिक सरहुल समिति के अध्यक्ष दसई मांझी, दिनेश करमाली कार्तिक मांझी, सतनारायण बेदिया सहित कई श्रद्धालुओं ने बारी बारी से जाहेर बोंगा जाहेर आयो के समक्ष माथा टेक कर प्रार्थना किया और सामुहिक रूप से सरना झंडागड़ी की गई।

इसके उपरांत पाहन द्वारा आशीर्वाद स्वरुप सखुआ फूल बांट कर टिका लगाया और सभी ने अपने कानों में सखूआ फूल खोंसा। वहीं सभी उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच महाप्रसाद सोड़े बांटा गया।

मौके पर मुख्य अतिथि झामुमो के केंद्रीय सचिव संजीव बेदिया ने समस्त आदिवासियों झारखंडियों को प्रकृति पर्व बाहा की हार्दिक शुभकामनाएं दिया और कहा कि सरहुल पर्व मानव जाति एवं प्रकृति के बीच अटूट संबंध को दर्शाता है तथा सभी को प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन का संदेश देता है। इस अवसर पर जरूरत है जल, जंगल, जमीन व पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेने की।

वहीं सामूहिक सरहुल समिति के अध्यक्ष दसई मांझी ने कहा कि सरहुल एक दिन का जश्न नहीं, साल भर की खुशियों की शुरुआत है। सरहुल में प्रचलित है- नाची से बांची। यानी जो नाचेगा वही बचेगा। क्योंकि, मान्यता है कि नृत्य ही संस्कृति है। इसमें पूरे झारखंड में जगह-जगह नृत्य उत्सव होता है। महिलाएं लाल पाढ़ साड़ी पहनती हैंं। ऐसा इसलिए क्योंकि सफेद पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है। वहीं लाल संघर्ष का। सफेद सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा और लाल बुरुबोंगा का प्रतीक है। इसलिए सरना झंडा भी लाल और सफेद ही होता है। उन्होंने कहा कि सरहुल दो शब्दों से बना है। सर और हूल। सर मतलब सरई या सखुआ फूल। हूल यानी क्रांति। इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया। मुंडारी, संथाली और हो-भाषा में सरहुल को ‘बा’ या ‘बाहा पोरोब’, खड़िया में ‘जांकोर’, कुड़ुख में ‘खद्दी’ या ‘खेखेल बेंजा’, नागपुरी, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली भाषा में इस पर्व को ‘सरहुल’ कहा जाता है।

मौके पर मुख्य रूप से झामुमो केन्द्रीय सचिव संजीव बेदिया, सामूहिक सरहुल समिति के अध्यक्ष दसई मांझी, दिनेश करमाली, कार्तिक मांझी, सामूहिक सरहुल समिति के संरक्षक बहादुर मांझी, सुखू मांझी, खेपन मांझी, सतनारायण बेदिया, नकुल प्रजापति, सुरेश मुर्मू, जुगल करमाली, तुलसी उरांव, महादेव सोरेन, जितेंद्र यादव, पूरन टूडू, तालो हंसदा, शिकारी टूडू, राजू पवरिया, सहदेव मांझी, मोहन मांझी, सुरेश प्रजापति, बुधन करमाली, नंदू करमाली, सोमरा पवरिया, बरियत किस्कू, धनलाल बेदिया, जगमोहन बेदिया, परमेश्वर सोरेन, सुरेंद्र हंसदा, प्रयाग प्रसाद, पूरन टूडू, बिनोद सोरेन, दीपक मरांडी, गणेश मुर्मू, टिंकू करमाली, रामलाल बेदिया सहित कई लोग शामिल थे।

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