कृत्रिम झील के बीच भव्य मकबरा करता है आकर्षित
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बिहार: विविधता में एकता अपने भारत की पहचान है। देश की विस्तृत स्थापत्य कला और समृद्ध इतिहास के साक्ष्य जगह-जगह मौजूद हैं। बिहार के सासाराम में शेरशाह का मकबरा देश के ऐसे ही महत्वपूर्ण धरोहरों में शुमार है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते रहते हैं। इसे “शेरशाह का रौज़ा” के नाम से भी जाना जाता है।
शेरशाह का मकबरा
भारत में इस्लामी वास्तुकला कला का यह बेजोड़ नमूना है। लगभग 22 एकड़ में फैले कृत्रिम झील के बीचोबीच अवस्थित इस भव्य मकबरे तक पहुंचने के लिए उत्तर में स्थित छोटे मकबरे नुमा कमरे से होकर एकमात्र रास्ता जाता है। शेरशाह का मकबरा 122 फीट उंचा और अष्टकोणीय है। मुख्य मकबरे के उपर विशाल गुंबद बना हुआ है। उंचाई पर बने कई झरोखे बने हुए हैं। जिनसे मकबरे के अंदर रोशनी पहुंचती और इससे हवादार भी बना रहता है। मुख्य मकबरे के बीच शेरशाह और अन्य की कब्रें हैं। अष्टकोणों पर छोटे-छोटे गुंबद के साथ गलियारे हैं। जिनसे झील और आसपास की खूबसूरती देखी जा सकती है। शेरशाह के मकबरे को देखने के लिए यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग आते हैं। टिकट दर भारतीयों के लिए 25 रूपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 300 रुपये है। यहां से कुछ दूरी पर जमीन पर बना छोटा मकबरा भी है। जिसे सूखा रौज़ा के नाम से जाना जाता है।
यह है शेरशाह सूरी का इतिहास
भारत में जन्में पठान सम्राट शेरशाह सूरी की याद में यह मकबरा बनाया गया है। जिसका निर्माण शेरशाह के जीवन काल में ही शुरू हुआ। उनकी मृत्यु के तीन माह बाद निर्माण पूरा किया गया। शेरशाह का वास्तविक नाम फरीद खां था। शेरशाह ने मुगल साम्राज्य को हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की। बताया जाता है कि शेरशाह सूरी मुगलवंश की नींव रखनेवाले बाबर की सेना के सिपाही थे। शेरशाह आगे चलकर सेनापति और बिहार के जागीरदार बने। बाबर की मृत्यु के उपरांत हुमायूं को हराकर शेरशाह सूरी ने 1540 में उत्तर भारत पर आधिपत्य कर लिया। 1545 में शेरशाह की मृत्यु के बाद उनके बेटे इस्लाम खां ने इस मकबरे का निर्माण पूरा कराया। 16 अगस्त 1945 को मकबरे का निर्माण पूरा हुआ।
कैसे पहुंचे सासाराम
शेरशाह का मकबरा सासाराम शहर में स्थित है। जो कि सासाराम रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से नजदीक है। बिहार की राजधानी पटना से सासाराम की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है। नजदीकी बड़े स्टेशनों में गया जंक्शन और दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (यूपी) से सासाराम पहुंचा जा सकता है। नजदीकी एयरपोर्ट में पटना, गया और वाराणसी एयरपोर्ट है।
सरकार और प्रशासन की दिखती है उदासीनता
शेरशाह का मकबरा न सिर्फ बिहार राज्य बल्कि पूरे भारत के लिए महत्वपूर्ण धरोहर है। यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। बावजूद इसके यहां सरकार की ओर से कोई सार्थक पहल होती नहीं दिखती। वर्षों से स्थिति यथावत है। लगभग दो दशक पूर्व झील में बोटिंग की शुरुआत हुई थी। जिसे कुछ समय में बंद कर दिया गया। वहीं रौजा के बाहर पश्चिमी रास्ते पर कचरे का अंबार पसरा दिखता है। शहर में भी साफ-सफाई को लेकर कोई ठोस कवायद नहीं दिखती।