बच्चों से करें खुलकर बातचीत, शिक्षा के साथ दें अच्छे संस्कार, जानकारों की राय भी जानें! 

रामगढ़: दादी-नानी की वो-कहानियां… हां! वही कहानियां… जिनमें छिपा था जीवन का फलसफा…वहीं दो-चार कहानियां… जिन्हें सुनते थे हम जानें कितनी दफा…कहानियां जिनके अंत में कोई शिक्षाप्रद सीख होती थी। सीख! जो संकुचित होते परिवार में नौनिहालों को मिल नहीं पा रही। भाग-दौड़ और व्यस्तता के बीच अभिभावक बच्चों के भविष्य, उनके स्वास्थ्य और बदलते व्यवहार को लेकर चिंतित तो दिखते हैं, लेकिन पहल करने से कतराते हैं। छोटे बच्चों के संबंध में स्मार्टफोन का उपयोग अब भी अभिभावकों की निगरानी के दायरे में होना चाहिए। बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन और एकाकी स्वभाव को गंभीरता से लेने की जरूरत है। अभिभावक और बच्चों के बीच नियमित संवाद भावी अनिश्चितताओं से बचा सकता है। 

वहीं किशोरों को लेकर और भी सजग रहने की जरूरत है। उनके आचरण और बदलती दिनचर्या पर ध्यान देते रहने की दरकार है। अक्सर किशोरों को महंगे बाइक तेज रफ्तार से चलाते और स्टंट करते देखा जाता है। अभिभावक की यह लापरवाही और कायदे-कानून की अनदेखी हादसे के रूप में उनपर ही भारी गुजरती है। बच्चों की संगति किनके साथ है इसपर भी नजर रखने की जरूरत है। उम्र के इस पड़ाव पर प्रायः उचित-अनुचित के बीच चुनाव करने में बच्चे नाकाम रहते हैं और गलत रास्तों पर चलकर भविष्य बिगाड़ लेते हैं। व्यवहार में परिवर्तन महसूस करने पर बच्चों से बातचीत कर उनकी चिंताओं और परेशानी का सबब जानने का प्रयास करें। अनुचित कार्यों के दुष्परिणाम से अवगत कराएं और उनकी भावनाओं को समझे और विचारों को भी तरजीह दें। किसी अन्य बच्चे से तुलना करने की बजाय अपने बच्चे को अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करें। किसी प्रकार की दुविधा की स्थिति में बच्चे के शिक्षकों का सहयोग लेना बेहतर विकल्प हो सकता है। 

टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता और बदलती जीवनशैली में स्कूली बच्चों के हितार्थ क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्यालयों के प्रतिनिधियों ने “खबरसेल” से अपने विचार और सुझाव साझा किए हैं। 

संवाद थमने पर शिथिल पड़ता हैं संबंध, बच्चों के साथ गुजारें वक्त 

डीएवी पब्लिक स्कूल, उरीमारी की प्राचार्या डॉ. सोनिया तिवारी कहती हैं कि भारतीय संस्कृति में पारिवारिक मूल्यों का क्षय हो रहा है, इसे संजोए रखने की जरूरत है। वर्तमान समय में परिवार के सदस्य एक साथ रहते हुए भी भावनात्मक रूप से एक दूसरे से अलग-थलग दिखते हैं। जहां संवाद नहीं होता, वहां संबंध शिथिल पड़ने लगते हैं। इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है। एकाकी रहने की आदत से बच्चों में अधीरता और स्वार्थ की भावना प्रबल होने लगती है। जिससे वे दिग्भ्रमित होते हैं और गलत रास्तों पर भी चल पड़ते हैं। बच्चों के सर्वांगीण विकास में परिवार की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का आचरण और व्यवहार काफी हद तक बच्चों के संस्कार निर्धारित करता है। बच्चों को नाकारात्मक माहौल से बचाना चाहिए। परिवार के सदस्य बच्चों को पर्याप्त समय दें और उन्हें अपनी सोच और जिज्ञासा को साझा करने दें। गलतियों पर उन्हें प्यार से समझाएं-बुझाएं और अच्छी चीजों के लिए प्रोत्साहित भी जरूर करें। 

पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ चरित्र निर्माण भी है जरूरी 

ए’ ला एंग्लाइज स्कूल, भुरकुंडा के प्राचार्य विजयंत कुमार कहते हैं कि आधुनिक समय में शिक्षा अब पुस्तकीय ज्ञान पर केंद्रित सी होती जा रही है। जबकि बच्चों का चरित्र निर्माण भी उतना ही जरूरी है। उन्होंने कहा कि, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के इस दौर में नैतिक शिक्षा की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। इससे सत्यनिष्ठा, प्रेम, क्षमा, दया और परोपकार जैसी मानवीय संवेदनाएं विकसित होती हैं, जो सही-गलत का भेद बताकर जीवन को सही दिशा देती हैं। शिक्षक और अभिभावक बच्चों को केवल शिक्षित ही नहीं बल्कि चरित्रवान बनाने पर भी जोर दें। जिससे वे जिम्मेदार नागरिक बन सकें। 

जीवन के प्रति साकारात्मक सोच विकसित करने का होता रहे प्रयास 

ओपी जिंदल स्कूल, बलकुदरा के प्राचार्य गुरूदत्त पांडेय कहते हैं कि वर्तमान परिवेश में युवाओं और किशोरों द्वारा आत्म हत्या करने के मामले अधिक देखे-सुने जा रहे हैं। इस प्रकार की प्रवृत्ति का पूर्ण रूप से विलोपन होना चाहिए। इस दिशा में सामाजिक पहल होनी चाहिए। जिसमें शिक्षक और अभिभावक साझा रूप से महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकते हैं। बच्चों में जीवन के प्रति विस्तृत और साकारात्मक सोच विकसित करने की दिशा में प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसाधन और सुविधाएं बेहतर करियर के मार्ग को आसान जरूर बनाती हैं। लेकिन सफलता मेहनत, एकाग्रता और सही मार्गदर्शन से ही प्राप्त होती है। जीवन के किसी भी पड़ाव पर मिली एक असफलता या हार को इतिश्री मान लेना सरासर नासमझी है। हौसले से इंसान हर बाधा पार कर सकता है और परिश्रम से बड़े आयाम भी तय किए जा सकते हैं। 

बच्चों को मिले सुरक्षित भविष्य, चुनौतियों के लिए भी करें तैयार 

शांति निकेतन विद्यालय, उरीमारी के निदेशक नरेश करमाली कहते हैं कि वर्तमान समय में हम सभी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र होते बड़े परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं। इसका व्यापक प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखा जा रहा है। आज निकट भविष्य की परिकल्पना करना तक संभव नहीं रह गया है। आज के बच्चे भविष्य की संभावित चुनौतियों से निपट सकें, इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र में जरूरी पहल होनी चाहिए। इसके अलावे पर्यावरण और वन संपदा की सुरक्षा, प्रदूषण की रोकथाम और यातायात सुरक्षा के उपायों को अनिवार्य रूप से अपनाने की जरूरत है। भ्रष्टाचार की रोकथाम को लेकर भी प्रभावी और पारदर्शी कदम उठाए जाने चाहिए। जिनसे बच्चों को बेहतर और सुरक्षित भविष्य मिल सके। 

बच्चे को हम-उम्र साथियों के साथ खेलने-कूदने दें, शारीरिक गतिविधियां भी है जरूरी 

महात्मा गांधी उच्च विद्यालय, भुरकुंडा के प्रधानाध्यापक कैलाश राम बताते हैं कि बचपन में ही व्यक्तित्व की बुनियाद स्थापित होती है। वर्तमान में गली-मुहल्लों में खेलते बच्चों के झुंड अब गायब से होने लगे हैं। यह बच्चों की कमजोर होती बुनियाद का एहसास कराता है। अभिभावक बच्चों की निगरानी और उनका ध्यान जरूर रखें, लेकिन बच्चों को अपने आस-पास की प्रकृति जुड़ने और खुद से अनुभव प्राप्त करने का अवसर भी दें। बच्चों को अपने हम उम्र बच्चों के साथ खेलने-कूदने दें। इससे बच्चे अपनी सोच, अपनी जिज्ञासा और अपने पसंद-नापसंद को साझा कर सकेंगे। इससे बच्चे कुंठाग्रस्त होने और तनाव से बचेंगे‌। खेल-कूद से शारीरिक और मानसिक मजबूती मिलेगी। 

बेटियों को भी मिले उच्च शिक्षा और करियर बनाने का अवसर 

उत्क्रमित उच्च विद्यालय, बीचा के प्रभारी प्रधानाध्यापक कुमार रोशन  कहते हैं कि शिक्षा को लेकर लड़का-लड़की के बीच भेदभाव कमोबेश आज भी देखने को मिलता है। स्कूली शिक्षा के बाद जहां लड़कों की उच्च शिक्षा और उनके करियर को लेकर अभिभावक गंभीर दिखते हैं। वहीं लड़कियों की उच्च शिक्षा और करियर को लेकर उदासीनता ही दिखती है। इस प्रकार का भेदभाव बंद होना चाहिए है। बेटा हो या फिर बेटी, प्रतिभा को समान अवसर जरूर मिलना चाहिए। आज विभिन्न क्षेत्रों में बेटियां बेहतर प्रदर्शन करते हुए न सिर्फ माता-पिता को गौरवान्वित कर रही हैं, बल्कि विषम परिस्थितियों में परिवार का मजबूत आधार भी बन रही हैं। 

बच्चों के पोषण को गंभीरता से लें अभिभावक 

भारत भारती विद्यालय, उरीमारी के प्राचार्य माहे आलम बताते हैं कि बदलते परिवेश में बच्चों का सही पोषण बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। पोषण को लेकर अभिभावक अमूमन लापरवाह दिखते हैं। दुष्प्रभाव की जानकारी के बावजूद बच्चों को फास्ट फूड खिला रहे हैं। जो सेहत के लिहाज से हानिकारक है। बच्चों के उम्र और वजन के हिसाब से उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषण दिया जाना चाहिए। अभिभावक फल, साबुत अनाज और हरी सब्जियों को तरजीह दें। बच्चे पर्याप्त रूप से पानी पिएं इसका भी ध्यान रखना चाहिए। पैकेट बंद प्रोसेस्ड फूड बिल्कुल न खिलाएं। बच्चा कमजोर या सुस्त हो तो चिकित्सक की सलाह पर उचित खान-पान दिया जाना चाहिए। 

इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के सदुपयोग के लिए बच्चों को करें प्रेरित 

उत्क्रमित मध्य विद्यालय बलकुदरा के प्रधानाध्यापक विनोद राम कहते हैं कि डिजीटल युग में अभिभावकों और शिक्षकों को और भी सजग रहने की जरूरत हैं। मोबाइल और इंटरनेट पर बच्चों का काफी वक्त बीत रहा है और गंभीर चिंता का विषय यह है कि इंटरनेट पर अच्छी और बुरी दोनों चीजें उपलब्ध है। सोशल साइट्स पर अनैतिक, भ्रामक और विचलित करने वाली चीजें प्रसारित होती हैं। बच्चों को स्नेहपूर्ण तरीके से इंटरनेट के उपयोग और सही-गलत की जानकारी देनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए की बच्चे इंटरनेट का सदुपयोग ही करें। स्मार्ट फोन के प्राइवेसी सेटिंग में जरूरी विकल्पों का उपयोग भी काफी कारगर हो सकता है। 

 

 

 

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