रामगढ़: हमारे झारखंड की भूमि सिर्फ रत्नगर्भा ही नहीं है, बल्कि यहां की आधी आबादी यानी महिलाएं भी रत्न से कमतर नहीं हैं। मां प्रकृति की भांति सौम्य दिखती यहां कि महिलाएं विषम परिस्थितियों मे सारा बीड़ा अपने मजबूत कांधे पर उठाने का भी माद्दा रखती है। इनके सपने बेहद बड़े न सही, लेकिन उनमें भी लोकहित अवश्य समाहित होता है। ऐसी एक महिला है देवंती देवी, जो व्यस्त दिनचर्या के बीच पारंपरिक हस्तकला को जीवंत रखने और अपने हुनर को निरंतर तराशने में जुटी हुई है। लालसा यह कि अन्य महिलाएं भी समय का सदुपयोग कर हुनरमंद बने और अपने अस्तित्व को एक अलग पहचान दें।

रामगढ़ जिले के घुटुवा बस्ती की रहने वाली देवंंती देवी कासी घास, ताड़ के पत्ते, मक्का के छिलके से कई वस्तुओं का निर्माण करती है। जहां कासी घास और ताड़ के पत्ते से पूजा की डलिया, ट्रे, कटोरी, कैरी बैग बनाती है। वहीं मक्का के छिलके से फूलदान बनाती है। इतना ही नहीं देवंती देवी को ऊन से विभिन्न प्रकार के पोशाक बनाने में भी महारत हासिल है। अलग-अलग डिजाइन के ऊनी शॉल, स्वेटर, कोटी, स्कार्फ, टोपी सहित अन्य चीजें भी बुनती हैं। उनके द्वारा नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए बुने गए ऊनी मोजे लोगों को खूब लुभाते हैं।

हालांकि देवंती अब तक यह काम शौकिया तौर पर ही करतीं रही हैं। इधर, बीते दिनों घुटुवा में आयोजित युवा महोत्सव में देवंती देवी‌ के परिचितों ने उन्हें हस्तकला की वस्तुओं का स्टॉल लगाने का सुझाव दिया। देवंती देवी ने स्टॉल लगाया और लोग खिंचे चले आए। उनका स्टॉल न सिर्फ आकर्षण का केंद्र रहा बल्कि प्रथम पुरस्कार से सम्मानित‌ किया गया। देवंती बताती हैं कि सिर्फ प्रदर्शनी के तौर पर स्टॉल सजाई थी, जबकि लोगों ने कई वस्तुओं की खरीदारी भी की। अधिकांश लोगों ने कला को व्यवसायिक रूप से विस्तार देने का भी सुझाव  दिया।

देवंती देवी से बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि महज छठी कक्षा तक उन्होंने पढ़ाई की है। पति सीसीएल कर्मी है और गिद्दी में कार्यरत हैं। बेटी बाहर एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है और बेटा भी इंजीनियरिंग कर रहा है। घर परिवार सुखी और संपन्न है। वे बताती है कि पारंपरिक हस्त कलाएं उन्हें बचपन से ही प्रभावित करती रही है। कम उम्र में विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में व्यस्त हो गईं। काम-काज के बीच जो भी थोड़ा-बहुत समय मिला उसमें सिर्फ अपने हुनर को तरासने की जद्दोजहद करतीं रहीं।

 

बिना प्रशिक्षण पारंपरिक हस्त कला को आधुनिक सोच के साथ नये आयाम देने को अग्रसर देवंती देवी बताती हैं कि हस्तकला के कद्रदान कम नहीं है। जरूरत है विस्तृत बाजार और कुशल हुनरमंदों की। उन्होंने कहा कि सरकार को भी इस दिशा में पारदर्शिता के साथ पहल करनी चाहिए। प्रशिक्षण के साथ बाजार भी उपलब्ध कराने का प्रयास होना चाहिए। हस्तकला उत्पादों का नियमित प्रचार-प्रसार करने के साथ ही उत्पादों को और बेहतर बनाने की दिशा में  अनुसंधान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक महिलाएं भी हस्तकला की ओर बढ़ें, सीखें और स्वावलंबी बने तो बड़ी खुशी होगी। अवसर मिला तो गरीब और जरूरतमंद महिलाओं प्रशिक्षण देने का प्रयास करूंगी।

देवंती देवी कहती हैं कि प्रकृति ने हमें सबकुछ दिया है। जीवन और जीवन जीने का आधार दिया है। प्रकृति में ही हमारे जरूरत की हर चीज है। जरूरत है उन्हें तलाशने और उनका सदुपयोग करने की।एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त चीजों में ही इसका विकल्प ढूंढना बेहतर होगा। कहा कि काशी घास और ताड़ के पत्ते की चीजें एक अच्छा विकल्प हो सकती हैं। हमारे क्षेत्र में कासी घास की प्रचूरता है। लेकिन प्लास्टिक के अनुपात में मजबूती और टिकाऊपन पर सवाल उठ सकते हैं। इस दिशा में अपनी समझ-बूझ से लगातार प्रयोग और प्रयास कर रही हूं। बताया कि सबाई घास (जिससे पारंपरिक खाट की बुनाई होती है) बेहद उम्दा विकल्प है। यह काफी मजबूत और टिकाऊ होता। समस्या यह है कि यह आसानी से और कम कीमत पर उपलब्ध नहीं होता। इस दिशा में सरकार पहल कर सके तो बेहतर होगा।

 

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