रामगढ़: हूल दिवस के अवसर पर दर्जा प्राप्त मंत्री फागु बेसरा के आवासीय कार्यालय हेसागढ़ा में शहीद सिद्दो-कान्हू को श्रद्धांजलि दी गई। अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि झारखंड राज्य समन्वय समिति सदस्य फागु बेसरा, विशिष्ट अतिथि झामुमो केंद्रीय सदस्य राजकुमार महतो ने सिद्धू-कान्हू की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर नतमस्तक हुए।

इस दौरान फागु बेसरा ने हुल दिवस पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में संथाल हूल 19 वीं शताब्दी में हुए विद्रोहों में संथाल हूल सबसे अधिक संगठित और सशक्त विद्रोह ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण एशिया महादे़श में यह सबसे बड़ा जन आन्दोलन था ।जिसमें हज़ारों पुरूषों के साथ साथ महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर सशस्त्र क्रांति किया और वीर गति को प्राप्त किया ।

उन्होंनेकहा कि सन् 1855 के संथाल हूल के सभी शहीदों वीरों के बारे सम्पूर्ण जानकारी होना असंभव है । विभिन्न लेखों संकलनों से संक्षिप्त जानकारी मिलती है । कहा कि अंग्रेजी शासन के दौरान शोषण, अत्याचार, कुव्यवस्था, अंग्रेजों के बिचौलियों, दलालों, महाजनों,और महिलाओं की प्रताड़ना और बढ़ते मालगुज़ारी के बोझ से जंगल की तराई इलाक़े में आदिवासी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे ।

संथालों के शोषण की चर्चा आम हो गई। वीरभूम, बाँकुडा से हजारीबाग   तक चर्चा फैली और मांझी परगना अन्य लोगों के साथ गुप्त सभाएं शुरू हो गई ।

इस दौरान भोगनाडीह से चुन्नू मुर्मू के चारों पुत्र सिदो कान्हू चांद भैरव दूर दूर तक गुप्त सभाएँ बैठकों में जाने लगे । राजमहल रेलवे लाईन निर्माण के दौरान आदिवासी युवतियों के साथ दुराग्रह पूर्ण घटना ने विद्रोह में आग का काम किया ।तीव्र विद्रोह की तैयारी का व्यापक रूप होता गया ।

30 जून 1855 को भोगनाडीह में हज़ारों हज़ार संथालों की भीड़ एकत्रित हो कर सिदो कान्हू के नेतृत्व में अंग्रेज़ी सरकार के खिलाफ हूल विद्रोह की घोषणा कर दी ।

संथाल क्रांतिकारी वीरों ने हज़ारों हज़ार अंग्रेज़ी फ़ौजों को मार गिराया और लड़ते लड़ते हज़ारों संथाल भी शहीद हो गए ।
कई महीनों के अथक प्रयास के बाद अंग्रेज़ी सरकार ने वीर सिदो कान्हू को गिरफ्तर किया । वीर सिद्दो को भोगनाडीह में और कान्हू को उपरबांधा में फांसी दी गई ।

फागु बेसरा ने कहा कि हजारों संथाल वीरों की शहादत का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि संथाल क्षेत्रों के लिए संताल परगना ज़िला बनाया गया। पुलिस रूल्स 1856 के अन्तर्गत ग्राम प्रधान माँझी परगना को मान्यता मिली और ग्रामीण के पदाधिकारियों को पुलिस का अधिकार दिया गया । इतिहास कारों ने इस महान जन आन्दोलन संथाल विद्रोह का उपेक्षा कर संक्षिप्त में वर्णन किया ।

जबकि काल मार्क्स ने अपनी पुस्तक नोट्स ऑन इण्डियन हिस्ट्री में लिखा है कि 1855 ई में संथालों के द्वारा की गई क्रांति अंग्रेजों को भारत से भगाने की प्रथम जनक्रांति थी । वास्तव में सन् 1855-56 में संथाल विद्रोह ने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई का न केवल बीजारोपण किया अपितु वहीं सन् 1857 तक अंकुरित होकर सिपाही विद्रोह हो गया तथा समस्त भारत में आज़ादी की लड़ाई का माहौल फैलता गया और शहादत चलती रही। लाखों लोगों गुमनाम शहीदों की शहादत अन्ततोगत्वा रंग लायी सन् 1947 को भारत आज़ाद हो गया ।

हुल दिवस कार्यक्रम में मुख्य रूप से हेसागढा पंचायत के मुखिया एतवा मांझी, सोनाराम मांझी, सुरेश चंद्र पटेल, सनु मदन सोरेन, बीरबल मराण्डी, चुनूराम बेसरा, भुनेश्वर ठाकुर, नरेंद्र रविदास, अभिषेक कुमार, धनीराम मांझी, दुर्गा सोरेन, अमित हंसदा, सुरेश सोरेन, शनिचार मांझी, सुरेश मांझी, सुखदेव महतो, राजदीप महतो एवं सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए।

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