रामगढ़: घुटूवा स्थित शहीद भगत सिंह पुस्तकालय में रविवार को झारखंड जन संस्कृति मंच के तत्वावधान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुंशी प्रेमचंद के साहित्यिक योगदान और उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेंद्र बेदिया और संचालन कृष्णा बेदिया ने किया। अवसर पर सर्वप्रथम प्रेमचंद के चित्र पर पुष्प अर्पित कर एक मिनट की मौन श्रद्धांजलि दी गई।
संगोष्ठी में जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेंद्र कुमार बेदिया ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी साहित्य के शिखर पुरूष, यथार्थवादी साहित्य के जनक और भारत के महानतम कथाकारों में से एक रहे हैं। उन्होंने अपने लेखन से समाज के शोषण, गरीबी, जातिवाद, छुआछूत, किसानों की बेबसी, संघर्ष, नारी उत्पीड़न और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को गहराई से उजागर किया है। यही कारण है कि उनकी कहानियों और उपन्यासों ने लाखों लोगों के मन को स्पर्श किया है। आज भी उनका साहित्य उतना ही पढा जाता और उतना ही प्रासंगिक है, जितना सौ साल पहले पढ़ा जाता था।
वहीं डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची के खोरठा की प्रोफेसर सुशीला कुमारी ने क्षेत्रीय भाषा खोरठा में अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रेमचंद स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। वहीं दूसरी ओर छुआछूत, धार्मिक आडंबर के घोर विरोधी थे। उनके उपन्यास और कहानी में पात्र एकदम साधारण लोग होते हैं जो संघर्ष कर अपना नैतिकता और इंसानियत कभी नहीं छोड़ते हैं। उनके साहित्य के केंद्र में निम्न वर्ग के शोषण और संघर्ष को दिखाया गया है।
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय के संस्थापक और प्रगतिशील बुद्धिजीवी देवकीनंदन बेदिया ने कहा कि आज सबसे ज्यादा हमला बौद्धिकता पर हो रहा है। प्रेमचंद की परंपरा को निर्वाह करते हुए साहित्य में सच ही लिखा जाना चाहिए।
मौके पर शहीद भगत सिंह पुस्तकालय के सदस्य कृष्णा बेदिया ने प्रेमचंद द्वारा रचित लोकप्रिय कहानी ‘ईदगाह’ का वाचन किया। वहीं जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय पार्षद भरत बेदिया, दिनेश करमाली, पंकज कुमार, टुकू दास, शेखर बेदिया ने संगीतमय गीतों की प्रस्तुति से उपस्थित लोगों में ऊर्जा का संचार किया। इसके साथ ही शिक्षक अमल घोष, किरण कुमारी और हेमंती देवी के देखरेख में कार्यक्रम में नन्हे-मुन्ने बच्चों ने प्रेमचंद से संबंधित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता और चित्रकला में भाग लिया। बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए पुरस्कार स्वरूप पठन-पाठन सामग्री दी गई।
कार्यक्रम को सफल करने में मोतीलाल बेदिया, सुभाष बेदिया, धनमती देवी, अजीत बेदिया, गोलू, अमर बेदिया, अमित बेदिया, भीम बेदिया, अशोक बेदिया, अनिश कुमार, लकी कुमार, रोनित कमार, आशीष कुमार की उल्लेखनीय भागीदारी रही।