‘ढिबरा’ पर आश्रित परिवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर हुई कार्यशाला
कोडरमा: ग्लोबल माइका कमेटी के द्वारा ढिबरा पर आश्रित परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर हुए शोध से प्राप्त तथ्यों के व्यापक प्रसार हेतु जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला के मुख्य अतिथि पूर्व जिप अध्यक्ष शालिनी गुप्ता एवं विशष्ट अतिथि जिला खनन पदाधिकारी दारोगा राय उपस्थित हुए.
अवसर पर जिप सदस्य महेंद्र प्रसाद यादव, समाजसेवी कृष्णा सिंह घटवार, ग्लोबल माइका कमिटी के अध्यक्ष कृष्णा कान्त, गिरिडीह से आये सुरेश कुमार शक्ति, उमेश कुमार, वीरेंदर कुमार आदि उपस्थित रहे.
कार्यशाला को संबोधित करते हुए शालिनी गुप्ता ने कहा कि अलग राज्य गठन के 23 सालों के बाद भी माइका पॉलिसी नहीं बन पाया है, यह अपने आप में एक बड़ा व गंभीर प्रश्न है. हम सभी ढिबरा आश्रित परिवारों के लिए दिन रात चिंता करते हैं. हम सभी जिला के माइका को लेकर एक अलग पहचान देने के लिए संघर्ष और आन्दोलन कर रहे हैं. सरकार तक हमारी आवाज पहुंची भी है. परन्तु, अभी भी कोडरमा के ढिबरा आश्रित परिवारों के लिए कोई विशेष नीति नहीं बन पाई है.
उन्होंने कहा कि वन विंडो के माध्यम से ढिबरा पर आश्रित परिवारों का निबंधन ग्राम एवं पंचायत स्तर पर ही हो और उन्हें मान्यता मिले. उन्होंने कमिटी को आंध्रा एवं राजस्थान की भी पालिसी को मंगाने एवं अध्ययन करने की बात कही.
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कार्यशाला में जिला खनन पदाधिकारी दरोगा राय ने कहा कि ढिबरा डंप के स्थानों की पहचान जरुरी है. वन कानून एवं सेंचुरी क्षेत्र के कारण यह रेगुलेट नहीं हो पा रहा है. उन्होंने कहा कि फ़िलहाल रैयती एवं गैर मजुरवा भूमि पर ऑक्शन संभव है. उन्होंने कहा कि माइका को लेकर कानून बनाना विधान सभा का काम है. जब कानून आएगा तो फिर कोडरमा एक बार फिर से अपनी पहचान बना लेगी.
वहीं कमेटी अध्यक्ष कृष्णा कान्त ने अपने पीपीटी के माध्यम से शोध से प्राप्त तथ्यों को शेयर करते हुए बताया कि ऐतिहासिक रूप से ढिबरा उद्योग पिछली एक शदाब्दी से कोडरमा, गिरिडीह एवं बिहार के जिला नवादा एवं जमुई के गरीब एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आजीविका का एक मात्र श्रोत है परन्तु, विभिन्न कानूनों, अधिनियमों, नए पर्यावरण नियमों एवं अन्य नीतिगत कारणों से यह उधोग लगभग मरणासन्न स्थिति में पहुंच गया है. कमेटी ढिबरा आश्रित परिवारों की स्थिति में सुधार के लिए लगातार विविध प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि यह शोध नई लाभकारी नीतियां बनाने, सामाजिक क्षेत्रों में जरुरी निवेश, गैर सरकारी संस्थानों को अपने कार्यों में प्राथमिकताएं तय करने आदि में सहायक सिद्ध होंगे.
कृष्णा सिंह घटवार ने कहा कि मुख्यमंत्री के द्वारा ढिबरा को लेकर हरी झंडी दिखाने के बाद भी गाड़ियां पकड़ी जा रही है, मजदूरों पर मुक़दमा हो रहा है, यह कैसी व्यवस्था है? उन्होंने कहा कि जब तक कानूनी प्रक्रिया पूरीं नहीं होती है तब तक इसे चुनने की ढील दी जानी चाहिए.
कार्यशाला में मनोज दांगी, अनीता कुमारी, विकास कुमार, मो. ईल्ल्तुत्मिश, उमेश तिवारी, सिद्धार्थ कुमार, अशोक कुमार सिंह, अनुषा दास, आनंद कुमार आनंद, शंकर लाल राणा, अलोक कुमार सिन्हा, जीतेन्द्र कुमार सिंह, मो. इस्लाम, राम रतन अवध्या आदि उपस्थित थे. कार्यशाला का संचालन कमेटी के सदस्य इन्द्रमणि साहू और धन्यवाद ज्ञापन मनोज दांगी ने किया