वीर क्रांतिकारी सिद्धू-कान्हू संघर्ष के प्रतीक, हमेशा रहेंगे समाज के आदर्श : महाप्रबंधक

 

उरीमारी (हजारीबाग): विस्थापित समिति के द्वारा उरीमारी चेक पोस्ट के समीप विस्थापित नेता सह अबुआ संथाल समाज भारत दिशोम के केंद्रीय सचिव दसई मांझी के नेतृत्व में हूल दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि सीसीएल बरका-सयाल प्रक्षेत्र के महाप्रबंधक अजय सिंह, विशिष्ट अतिथि उरीमारी परियोजना पदाधिकारी दिलीप कुमार, बिरसा परियोजना पदाधिकारी डी शिवादास, डीएवी उरीमारी के प्राचार्य उत्तम कुमार राय के द्वारा सर्वप्रथम सिद्धू कान्हू की आदमकद प्रतिमा का माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गई।

अवसर पर मुख्य अतिथि सीसीएल बरका-सयाल महाप्रबंधक अजय सिंह ने कहा कि संथाल जनजाति के महान क्रान्तिकारी सिद्धू सिद्धू – कान्हू महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी क्रान्तिकारी थे। उन्होंने संथाल जनजाति के लिए आवाज उठाई और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने अत्याचार और शोषण के खिलाफ पुरजोर संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि संथाल हूल दिवस महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। जिसने आदिवासी समुदायों की आवाज को मजबूती दी और भारतीय आजादी के लिए संघर्ष का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बना। यह विद्रोह संथाल जनजाति की सामरिक क्षमता, वीरता, और संघर्ष आदर्श के लिए भी जाना जाता है।

विस्थापित नेता सह अबुआ संथाल समाज भारत दिशोम के केंद्रीय सचिव दसई मांझी ने कहा कि आंदोलन की शुरुआत 30 जून 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी भोगनाडीह गांव पहुंचे और आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब मालगुजारी नहीं देंगे। इसके बाद अंग्रेजों ने सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव इन चारों भाइयों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जिस दरोगा को चारों भाइयों को गिरफ्तार करने के लिए वहां भेजा गया था संथालियों ने उसकी गर्दन काट कर हत्या कर दी। इस दौरान सरकारी अधिकारियों में भी इस आंदोलन को लेकर भय पैदा हो गया था।

उन्होंने कहा किआंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इस इलाके में सेना भेज दी और जमकर आदिवासियों की गिरफ्तारियां की गईं और विद्रोहियों पर गोलियां बरसने लगीं। आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया गया। आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज सरकार ने पुरस्कारों की भी घोषणा की थी। बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए। इस युद्ध में करीब 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जान दी थी। सिद्धू और कान्हू के करीबी साथियों को पैसे का लालच देकर दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भोगनाडीह गांव में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फांसी की सजा दे दी गई। इस तरह सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव, ये चारों भाई सदा के लिए भारतीय इतिहास में अपना अमिट स्थान बना गए।

मौके पर मुख्य रूप से दिनेश करमाली, सुखू मांझी, रैना टुडू, सुरेश मुर्मू, खेपन मांझी, युगल करमाली, संतोष प्रजापति, नकुल प्रजापति, भवानी शंकर प्रसाद, कृष्णा सोरेन, जितेंद्र यादव, तालो हंसदा, शिकारी टुडू, मनोज सिंह, परमेश्वर सोरेन, सुरेंद्र हंसदा, विनोद सोरेन, सत्यनारायण बेदिया, सुखदेव किस्कू, सुबित राम किस्कू, भादो करमाली, राजू पवारिया, राजू टुडू, संजूल मांझी, मोहन पवारिया, लालजी पवारिया, मनोज टुडू, अजय टुडू, अनिल मुर्मू, प्रेम पवरिया, मंजीत मुर्मू, प्रकाश हंसदा, बसंत सोरेन, भोला किस्कू, प्रदीप किस्कू, बिहारी मांझी, बिरजू सोरेन, सोमरा मांझी, बिगन मांझी, बिरसा परियोजना के खान प्रबंधक राजेश प्रियदर्शी, यूके सिंह, राकेश कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।

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