यादों का झरोखा: अंग्रेजों के ज़माने का निर्माण, 2025 में 100 वर्ष होंगे पूरे
रामगढ़: ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भुरकुंडा में बनी सिविल डिस्पेंसरी आज सीसीएल के भुरकुंडा आदर्श क्षेत्रीय चिकित्सालय के रूप में जाना जाता है। वर्षों से इलाके के हजारों लोगों के सुख और दु:ख का साक्षी रहा यह अस्पताल 2025 में अपनी शताब्दी पूरी करेगा। भुरकुंडा सहित आसपास के लोगों विशेषकर बुजुर्गों की कई खट्टी-मिठ्ठी यादें इस अस्पताल से जुड़ी हैं। अंग्रेजों के शासन के दौरान 1925 ईस्वी में सिविल डिस्पेंसरी के रूप में अस्पताल का निर्माण हुआ था। अस्पताल के पुराने भवन पर इसके साक्ष्य आज भी अंकित मिलते हैं।
बताया जाता है कि तब रेलवे द्वारा आसपास कोयला संप्रेषण के लिए ट्रैक बिछाया जा रहा था। कोयला खदानों में ठेका मजदूर कोयला खनन करते थे। जहां सुरक्षा संसाधन के अभाव में अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती थी। उस दौरान रेलवे ने रेल लाइन बिछाने के साथ ही यहां दो भवनों का निर्माण कराया था। जिसके एक भवन के एक कमरे में डॉक्टर और कंपाउंडर के बैठने और इलाज करने की जगह थी। दूसरे कमरे में मरीजों को एडमिट करने के लिए 4-5 बेड लगे होते थे। वहीं दूसरे भवन में रेस्क्यू टीम प्रशिक्षण प्राप्त करती थी और रेस्क्यू से संबंधित सामान रखे होते थे।
जानकार बताते हैं कि शुरुआती दौर में अस्पताल के आसपास काफी घने जंगल हुआ करते थे। जहां जंगली जानवर का भी वास था। क्षेत्र में विषैले सांप-बिच्छू भी अधिक पाए जाते थे। आकस्मिक घटना-दुर्घटना में आम लोगों का अस्पताल तक पहुंच पाना मुश्किलों से भरा होता था। तब महिलाओं को इलाज के लिए समूह में जाना एक मात्र विकल्प हुआ करता था।
देश की आजादी के बाद लगभग 1956 में एनसीडीसी (NCDC) और फिर 1972 में कोल इंडिया की सहायक कंपनी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड अस्पताल का संचालन करने लगी। कालांतर में अन्य निर्माण भी होते गये और अस्पताल व्यवस्थित रूप भी लेता चला गया।
इतने वर्षों में अस्पताल ने हजारों लोगों की जान बचाने और इलाज मुहैया कराने में उल्लेखनीय योगदान दिया। भुरकुंडा कोयलांचल में इस अस्पताल की महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि पतरातू प्रखंड में सरकारी चिकित्सा सुविधा आज तक बदहाली की मार ही झेल रही है। प्रखंड की एक बड़ी आबादी की आकस्मिक चिकित्सा सुविधा का दारोमदार सीसीएल के ही कंधे पर दिखता है। यहां से रामगढ़ सदर अस्पताल की दूरी भी काफी अधिक है। क्षेत्र में गाहे-बगाहे होती दुर्घटनाओं में घायलों का पहला ठहराव भुरकुंडा सीसीएल अस्पताल में ही होता है। जहां प्राथमिक उपचार कर जीवन बचाने की मुहिम शुरू होती है।
शादी के बाद जब यहां आई तो डिस्पेंसरी के आसपास घने जंगल हुआ करते थे। जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता था। समूह में ही डिस्पेंसरी जाना पड़ता था। इलाज के लिए आसपास कोई और व्यवस्था नहीं थी। क्षेत्र के लोगों का यहीं इलाज होता था। इमरजेंसी में लोग खटिया पर लाए जाते थे।
फुलमती देवी, उपर धौड़ा, जवाहरनगर पंचायत निवासी
डिस्पेंसरी में किसी प्रकार की जांच की सुविधा नहीं थी। डॉक्टर अधिकांश बिमारियों में रोगियों को अक्सर एक ही लाल रंग की सीरप और कुछेक टैबलेट देते थे। मजे की बात यह होती थी कि लोग ठीक भी हो जाया करते थे। आज की तरह कई प्रकार के टेस्ट और महंगी दवाओं की परेशानी तब नहीं थी।
मो. युसूफ, जवाहरनगर पंचायत निवासी