कैनवास पर रंग भरने की चाहत, जरूरतों ने वाल पेंटिंग का रुख कराया

रामगढ़: अपना झारखंड खेल-कूद के क्षेत्र में देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहा है। जबकि कला का क्षेत्र अब भी खासा उपेक्षित दिखता है। जहां कई हुनरमंद कलाकार जीविकोपार्जन के लिए आजीवन संघर्षरत दिखते हैं, वहीं संसाधनों के अभाव में कई उभरते हुए कलाकारों के सपने अधूरे रह जाते हैं।

रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नवाटोला, चोकरबेड़ा का उभरता हुआ पेंटिंग आर्टिस्ट मिथुन बेदिया जीवन के झंझावतों के बीच अपने हुनर को नये आयाम दे रहा है। हुनर ऐसा कि ब्रुश के जरिए रंगों से जब वह कल्पना को जीवंत करने में जुटता है, लोग तारीफ किए बिना रह नहीं पाते हैं। रंगों और रेखाओं की उसकी समझ हर किसी को प्रभावित करती है। महज 23 वर्ष के मिथुन में एक असाधारण आर्टिस्ट के गुण साफ झलकते हैं। लगभग चार-पांच वर्ष पूर्व कागज से शुरू हुआ उसका सफर अब कैनवास पेंटिंग की ओर बढ़ चला है।

खबर सेल से विशेष बातचीत में मिथुन ने कहा कि उसने हाल में ही बैचलर इन फाइन आर्ट्स में एडमिशन लिया है। वह कैनवास पेंटिंग की बारिकियों को भी समझना चाहता है और पेंटिंग आर्टिस्ट के रूप में अपनी अलग और बड़ी पहचान बनाना चाहता है। उसने बताया कि आर्थिक तंगी की वजह से सिमित संसाधनों में हुनर निखारने की जद्दोजहद चल रही है। कहा कि पिता एक अरसे से अस्वस्थ चल रहें और घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं। एक बड़ा भाई है, जो बाहर काम करता है। जिससे परिवार की जीविका चलती है। घर की छोटी-छोटी जरूरतों और अपने खर्चों के लिए वह फिलहाल वाल पेंटिंग का काम कर रहा है। इससे वह अपनी कला से जुड़ा हुआ भी है और पढ़ाई भी सुचारू रूप से हो पा रही है।

मिथुन ने बताया कि कला को निखारने और प्रदर्शित करने का मौका कम ही हाथ लगा है। हालांकि कागज पर बनाई गई कई पेंटिंग को लोगों की खूब सराहना मिली है। अब कैनवास पर प्रोफेशनल तौर पर पेंटिंग करने की चाहत है। जो बिना प्रशिक्षण और मार्गदर्शन के कठिन प्रतीत हो रहा है। कहा कि प्रसिद्ध हस्तियों की तस्वीर बनाना अच्छा लगता है। ट्रेडिशनल पेंटिंग्स भी आकर्षित करती है। कहा कि भविष्य में परिस्थिति कैसी होगी, यह पता नहीं, लेकिन जबतक संभव है अपने हुनर को जिंदा रखने और निखारने की कोशिश जरूर करूंगा। 

मिथुन का कहना है कि आधुनिक परिवेश और टेक्नोलॉजी के दौर में कुछ कलाएं यदि आज भी कायम है तो कलाकारों के हौसले और उनके कद्रदानों की वजह से। कलाकारों को जीविकोपार्जन के अलावे भी कई चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। कहा कि झारखंड में प्रतिभावान कलाकारों की कमी नहीं हैं। राज्य सरकार को गरीब हुनरमंद युवा कलाकारों के प्रशिक्षण और प्रोत्साहन की दिशा में पहल करनी चाहिए। जिससे वह भी बेहतर मंच और मुकाम पा सकें। 

बहराल, आर्थिक तंगी और सिमित संसाधनों के बीच मिथुन बेदिया ने अपने सपनों को जीवंत रखने की मशक्कत जारी रखी है। हौसला है कि परिश्रम से दिन बहुरेंगे और तकदीर के कोरे कागज एक न एक दिन चटक रंगों से सराबोर जरूर होंगे। 

By Admin

error: Content is protected !!