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 विशेष पैटर्न, रेखाओं और बिंदुओं से जीवंत हो उठती है तस्वीर

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आज हम बात करेंगे ‘गोंड पेंटिंग’ की। आपको रूबरू करायेंगे भारत की हृदयस्थली मध्यप्रदेश की गोंड जनजाति की प्राचीन और पारंपरिक चित्रकला से। एकबारगी सामान्य सी दिखती गोंड आर्ट की पेंटिंग्स में जब आप झांकते हैं तो बस खोकर रह जाते हैं। अपने देश की प्राचीन और समृद्ध संस्कृति की झलक अद्भुत एहसास करा जाती है।

Nature is reflected in unique shapes, this is 'Gond Art'

‘गोंड समुदाय’ की यह विशिष्ठ जनजातीय कला शैली विशुद्ध रूप से प्रकृति पर केंद्रित और बिहार की ‘मधुबनी पेंटिंग्स के काफी करीब दिखती है। हालांकि गोंड आर्ट’ में महीन बिंदु, रेखाओं और अनोखे पैटर्न से पारंपरिक कथाओं और कहानियों को चित्रित किया जाता है। जो इसे अलग और आकर्षक बनाती है।

इस शैली में लाल, पीले, हरे, नीले और नारंगी रंग का उपयोग किया जाता है। लेकिन वर्तमान समय में कलाकार तस्वीर को जीवंत बनाने के अगल रंग और आकर्षक पैटर्न का उपयोग भी कर रहे है। पारंपरिक शैली के साथ नये प्रयोग से इस कला को नये आयाम मिल रहे हैं।

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गोंड आर्टिस्ट नरेश श्याम बताते हैं कि गोंड जनजाति भारत की बड़ी जनजातियों में से एक है। जो मूल रूप से मध्यप्रदेश और आसपास से हैं। आज यह जनजाति छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में निवास करते हैं। ‘गोंड आर्ट’ हमारे लिए पूर्वजों द्वारा एक के बाद दूसरी पीढ़ी को सौंंपी गई बड़ी विरासत से कम नहीं है। गोंड जनजाति की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को आगे बढ़ाना हमें बेहद गौरवान्वित और निरंतर उत्साहित करता है।

नरेश श्याम कहते है कि गोंड जनजाति में प्राचीन काल से घरों की दिवारों पर खास शैली में आकृतियां उकेरने और प्राकृतिक रंग भरने की परंपरा चलती आ रही है। आज गोंड चित्रकार इस शैली को बड़े कैनवास पर बना रहे हैं।  गोंड आर्ट को अब सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है।

Nature is reflected in unique shapes, this is 'Gond Art'वहीं गोंड जनजाति के युवा आज पूरी तन्मयता से अपनी पारंपरिक कला के वाहक बन इसके विस्तार में योगदान दे रहे हैं। यह आर्ट अब सिर्फ एग्जीबिशन तक सिमटा नहीं है, बल्कि अब कला प्रेमियों से सीधे तौर पर जुड़ रहा है। इंटरनेट ने राह आसान कर दी है। पेंटिंग की ऑनलाइन बिक्री भी हो रही है और कला प्रेमियों के पते तक यह पेंटिंग उपलब्ध भी हो रही है।

गोंड पेंटिंग के उद्भव का संक्षिप्त इतिहास

गोंड आर्ट को आज वैश्विक पटल पर लाने में गोंड जनजाति के जनगढ़ सिंह श्याम की अहम भूमिका रही। बताया जाता है कि वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गांव की दिवारों तक सिमटी इस बेहतरीन कला को बड़े कैनवास तक पहुंचाया और अलग पहचान दिलायी ।

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बताया जाता है कि देश प्रसिद्ध कलाकार जे स्वामीनाथन तब भोपाल में भारत भवन के निदेशक थे। वे भारत भवन के ‘रूपंकर विंग’ का निर्माण कर रहे थे। जो जनजातीय कलाओं को एक मंच देने का प्रयास था। इसके लिए उन्होंने विंग से जुड़े छात्रों को गांवों में भेजा। यहां एक घर की दिवार पर भगवान हनुमान की आकृति ने उन्हें बेहद आकर्षित किया। उन्हें पता चला कि गोंड जनजाति के लोग प्राचीन काल से इस अनोखी शैली में घरों की दिवारों पर आकृतियां बनाते रहे हैं।

आकृति बनानेवाले कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम से जे. स्वामीनाथन की मुलाकात हुई। उनके सुझाव पर जनगढ़ सिंह श्याम कैनवास पर चित्रकारी करने लगे। प्रयास रंग लाया और आज गोंड पेंटिंग देश और दुनिया में नये आयाम तय कर रही हैं।

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युवा गोंड आर्टिस्ट नरेश श्याम बताते हैं कि जीवन के 40वें दशक में कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम का निधन हो गया। तब वे कला से ही जुड़े एक असाइनमेंट पर जापान गये हुए थे। निधन कैसे हुआ यह अब भी रहस्य है। बहराल, उनके वंशज और गोंड वंश के कई कलाकार इस कला को जीवंत रखने में बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं।

साभार: नरेश श्याम, गोंड आर्टिस्ट (मध्यप्रदेश) 

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