शिबू सोरेन – ‘एक युग की सांस’ 

जंगलों की छाँव में जन्मा,
धरती का एक लाल था।
संघर्षों से सींचा जीवन,
सच का वह मशाल था।।

ग़रीबी की आँखों में जो,
देख सका सपनों का नूर।
जो लड़ा हर शोषण से,
था वह जनता का सुर।।

न झुका कभी तूफ़ानों से,
न डगमग पथ से कभी गया।
हर अन्याय के सम्मुख वह,
सत्य बनकर ही खड़ा रहा।।

नेमरा की मिट्टी ने पाया,
एक सपूत महान।
शोषित–वंचित की पीड़ा का,
बन गया वह पहचान।।

झारखंड की सुबह बना वह,
जो रातों से लड़ता रहा।
न्याय की लौ लेकर हाथों में,
हर अंधेरे से भिड़ता रहा।।

ना सियासत उसकी मंशा थी,
ना पद उसका स्वप्न कभी।
जनता के विश्वास की खातिर,
जीता रहा हर घड़ी।।

जब थमा उसका श्वास कहीं,
दिल्ली की चुप्पी में,
कांप उठा पूरा झारखंड,
विलाप था हर झोपड़ी में।।

पर विचार नहीं मरते हैं,
ना रुकते हैं आंदोलन।
हर पीढ़ी में जीवित रहते,
ऐसे युगपुरुष जननायक जन।।

हेमंत आज तुम्हारे कंधे,
विरासत को संभालें।
सच की मशाल जला कर,
जनता के दुखों को टालें।।

शिबू नहीं सिर्फ़ एक नाम,
बल्कि संघर्ष की परिभाषा है।
वो विचारों की लौ है ऐसी,
जो हर पीढ़ी की आशा है।।

चलो उस दीपक को जलाएं,
जो अब तुम्हारे हाथों में है।
बना दो इस सपने को सच,
जो अब तुम्हारी राहों में है।।

                     

उदय भान सिंह

सहायक शिक्षक उच्च विद्यालय सौंदा ‘डी’, जिला-रामगढ़, झारखंड

नोट- उपरोक्त रचना स्वैच्छिक रूप से भेजी गई है। खबर सेल मौलिकता की पुष्टि नहीं करता है।

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