भुरकुंडा में एक मेगावाट बिजली का होता था उत्पादन, आज भी है पावर हाउस और डैम

ब्रिटिश काल में रेलवे ने वर्ष 1927 में किया था निर्माण

रिपोर्ट– रघुनंदन

रामगढ़: जिले का कोयलांचल ब्रिटिश काल के कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है। भुरकुंडा की नलकारी नदी के झरने की खूबसूरती हमेशा से लोगों को आकर्षित करती रही है। वहीं पास में बने ब्रिटिश स्थापत्य कला का बेहतरीन और मजबूत नमूना पावर हाउस अब भी कौतूहल पैदा करता है। तब संसाधनों की भारी कमी और कोयला उत्पादन के शुरुआती दशकों में एक मेगावाट बिजली उत्पादन का महत्व क्या रहा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

भुरकुंडा में नलकारी नदी पर आकर्षक झरना असल मायने में तीन फाटकों वाला छोटा डैम है, जिसे एक मेगावाट बिजली उत्पादन के उद्देश्य से बनाया गया। नदी के पास ही पावर हाउस में लघु स्टीम बिजली प्लांट स्थापित था। जहां बिजली का उत्पादन होता था। यहां से उत्पादित बिजली की खपत उस समय बर्ड सौंदा (सौंदा डी), केसी थापड़ (सौंदा), सिरका और रेलीगढ़ा की कोयले की अंडरग्राउंड खदानों में होती थी।
बिजली उत्पादन की इस लघु परियोजना की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में रेलव द्वारा किया गया था। वर्ष 1927 में इसकी स्थापना हुई थी।

कोयले की खदानों में सप्लाई होती थी पावर हाउस से बिजली

नलकारी नदी पर डैम बनाकर पानी संचय किया जाता था। डैम में लोहे के तीन फाटक लगे हुए थे। पानी अधिक होने पर फाटक खोले जाते थे। डैम में संचित पानी टनल के माध्यम से पावर हाउस के निकट जमा किया जाता था। यहां से जरूरत के अनुसार पानी पावर हाउस के बॉयलर में जाता है। भाप के दबाव से टरबाइन घूमता था। जिससे बिजली उत्पादन होती थी। जबकि बॉयलर से निकलने वाला अतिरिक्त गर्म पानी पास के बने गहरे हौदों में जमा होता था। यहां से उत्पन्न बिजली कोयले की भूमिगत खदानों तक पहुंचती थी। बताया जाता है कि तब पावर हाउस के आसपास काफी घना जंगल हुआ करता था। जिसमें बाघ, लकड़बग्घा सहित कई जंगली जानवर हुआ करते। पावर हाउस का संचालन किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

पीटीपीएस की स्थापना से बंद हुई परियोजना

1963 में पीटीपीएस की स्थापना के तकरीबन पांच वर्ष बाद 1968 में इस परियोजना को बंद कर दिया गया। यहां की सारी मशीनरी हटा ली गयी। देखभाल के अभाव में पावर हाउस आगे कांजीहाउस (आवारा मवेशियों को रखने की जगह) बनकर रह गया। आगे चलकर कांजी हाउस भी बंद हो गया। वहीं नलकारी नदी के तीनों फाटक स्थाई रूप से बंद हो गए। डैम में मिट्टी भरता चला गया और समय बीतने के साथ नदी का पानी डैम के उपर से खूबसूरत झरने की शक्ल में गिरने लगा।

निर्माण में दिखती है उन्नत तकनीक, मजबूती करती है कायल

बात पावर हाउस और नलकारी नदी डैम के निर्माण की करें तो पावर हाउस और डैम में बर्ड कंपनी की बेहतरीन क्वालिटी की ईंटें लगी हुई है। जो काफी मजबूत हैं। इस प्रकार की ईंटें अब देखने को नहीं मिलती है। इन्हीं ईंटों का उपयोग ब्रिटिश काल में ही भुरकुंडा-सौंदा डी नलकारी पुल के निर्माण किया था। आज तकरीबन 100 साल होने को हैं, जबकि पावर हाउस, डैम और पुराना पुल मजबूती के साथ जस के तस खड़े हैं।

 

ब्रिटिश शासनकाल में 1927 ईस्वी के दौरान बन यह पावर हाउस हजारीबाग जिले का पहला स्टीम पावर प्लांट था। इससे उत्पन्न बिजली क्षेत्र की कई भूमिगत खदानों में जाती थी। आसपास जंगल था इसलिए कम लोग ही पावर हाउस की ओर कभी जाया करते थे।ललकू पासवान (लगभग 90 वर्ष) निवासी नीचे धौड़ा, भुरकुंडा

 

वर्ष 1966 में पीटीपीएस में मेरी पहली ज्वाइनिंग हुई। इसके लगभग दो वर्ष बाद तकरीबन 1968 में भुरकुंडा का पावर हाउस बंद कर दिया था। इससे पूर्व पावर हाउस देखने का मौका भी मिला। यहां से ठेका कंपनियों द्वारा चलाई जाती विभिन्न खदानों में बिजली सप्लाई होती थी।नीलकमल गुप्ता (85वर्ष), निवासी सौंदा ‘डी’

 

पावर हाउस से एक मेगावाट बिजली उत्पन्न होता था। पुरानी मशीनें लगी हुई थी। पावर हाउस के कर्मियों के शेड्यूल चेंज होने पर तेज भोंपू (सायरन) बजता था। जिससे हमलोगों को समय का अंदाजा हो जाता था।यदुनाथ विश्वकर्मा (80 वर्ष) निवासी- उपर धौड़ा, जवाहरनगर।

 

 

 

 

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