अखरा बचाओ, झारखंड सजाओ, भारत बढ़ाओ : पद्मश्री मुकुंद नायक

पद्मश्री मुकुंद नायक से खबर सेल की विशेष बातचीत

रांंची: बात जब झारखंड की संस्कृति और लोकगीत-संगीत की हो तो निश्चित रूप जेहन में पद्मश्री मुकुंद नायक की तस्वीर उभर आती है। झारखंड के सांस्कृतिक विकास और विस्तार में मुकुंद नायक ने जीवन का एक हिस्सा ही नहीं बल्कि पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया है। कठिन संघर्षों के बीच चली आ रही संगीत साधना और अपनी संस्कृति को बचाए रखने की कवायद इन्होंने अब भी जारी रखी है। कहना गलत नहीं होगा कि देश-विदेश में आज झारखंड के नागपुरी लोकगीत और संगीत की जो पहचान है, वह मुकुंद नायक से है।

Mukund Nayak and Daupadi Devi

पद्मश्री और संगीत नाट्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित मुकुंद नायक से खबर सेल प्रतिनिधि की खास बातचीत के प्रमुख अंश-

अखरा संस्कृति’ दिल में रच-बस गई, शुरू हो गई संगीत साधना

पद्मश्री मुकुंद नायक बताते हैं कि – “बचपन में मां-बहनों की आंचल थामे मैं अक्सर ‘अखरा’ में जाता था। जहां गांव के बुजुर्गों और युवक-युवतियों को लोकगीतों और वाद्ययंत्रों की धुन पर नाचते-गाते देख आकर्षित होता था…वहां जो देखता-सुनता, वह सब मन में बसता चला गया। यहीं से संगीत के प्रति ललक बढ़ी। पढ़ाई के साथ-साथ संगीत साधना भी शुरू हो गई।

 

शिक्षित समाज ही कर सकता है संस्कृति का बेहतर संरक्षण

मुकुंद नायक कहते हैं कि- “मुझे गर्व है कि संस्कृति के पोषक परिवार और घांसी जाति में जन्म हुआ। घांसी जाति कभी अनुसूचित जनजाति में आती थी। देश की आजादी के बाद इसे अनुसूचित जाति में शामिल किया गया। वे कहते हैं कि – “लोकगीत-संगीत से जुड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि रही। परिवार के अन्य सदस्य पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन शिक्षा के महत्व को समझने लगे थे। उन्होंने मेरी पढ़ाई-लिखाई पर पूरा जोर दिया”।  मुकुंद नायक ने कहा कि- ” अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए इसे शिक्षा से जरूर जोड़ना चाहिए। समाज के लोग शिक्षित होंगे, तो अपनी संस्कृति को भलीभांति समझेंगे और संरक्षण के लिए सार्थक  प्रयास कर सकेंगे।

सहयोगियों के लिए कुछ न कर पाने का हमेशा रहा मलाल

अपनी एक बड़ी वेदना का जिक्र करते हुए मुकुंद नायक कहते हैं कि –  “लगभग आधी दुनिया घूम चुका हूं। पद्मश्री, संगीत नाट्य अकादमी सहित देश-विदेश में कई पुरस्कार मिले। सभी जगह लोगों ने भरपूर स्नेह और सम्मान दिया। लेकिन आर्थिक पक्ष कभी ठीक नहीं रहा। परिवार को हमेशा आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा। वर्ष 1974 में उषा मार्टिन में नौकरी लगी। दूसरे ही वर्ष 1975 में आकाशवाणी में भी गीत-संगीत आधारित कार्यक्रम की बात तय हो गई। 1979 में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में नौकरी लगी। यहीं से देश-विदेश आने-जाने और झारखंड के लोकगीत संगीत पर आधारित कार्यक्रम करने का दौर शुरू हो गया।

मुकुंद नायक बताते हैं कि -” हमारी संस्था “कुंजवन” के बैनर तले हमेशा 40-50 सहयोगी कलाकार साथ निभाते रहे। उनमें से आज भी कई संगीत साधना में साथ हैं, तो कई अब इस दुनिया में नहीं रहे। मुकंद नायक आगे बताते हैं कि- “जीवन की एक बड़ी वेदना यह रही कि संगीत साधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वर्षों से साथ निभा रहे सहयोगियों के लिए कुछ भी न कर सका।  कभी कुछ थोड़ी आर्थिक व्यवस्था हो गई, तो कभी महीनों गुजरने पर भी कुछ हाथ न आया। 
यह कहते हुए भावुक होते मुकुंद नायक खामोश हो गये। कुछ पलों के बाद अनायास ही कुछ सोचकर पुनः जोश भरे अंदाज में बोले-“अब भी एक सूत्री लक्ष्य है कि झारखंड के आदिवासी और मूलवासी की संस्कृति को कैसे संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए। इसके लिए सभी राजनैतिक दलों के नेताओं से भी मिलता हूं और इसके लिए आग्रह भी करता रहता हूं। अपनी कला के माध्यम से यह प्रयास अनवरत कर रहा हूं और आगे भी यह जारी रहेगा.

पत्नी ने अकेले संभाला घर-बार, जारी रही संगीत साधना

मुकुंद नायक ने बताया कि – ” 1971 में विवाह हुआ। एक तरफ घर-परिवार और जीविकोपार्जन की समस्या तो दूसरी तरफ अपनी संस्कृति के उत्थान का दृढ़ संकल्प था”।  उन्होंने कहा कि ” पत्नी ने जीवन के हर कदम पर पूरा सहयोग किया और घर-बार की जिम्मेवारी बखूबी संभाली। उन्होंने एक मां के साथ पिता के भी दायित्व को निभाया। उनका सहयोग न होता तो बच्चों का भविष्य भी बर्बाद हो गया होता। मुकुंद नायक कहते हैं कि -” पत्नी के साथ के बिना यह कठिन संघर्ष जारी रख पाना संभव नहीं था। मेरे जीवन की हर छोटी-बड़ी उपलब्धियों में पत्नी का भरपूर सहयोग भी शामिल है।

युवाओं से ‘अखरा संस्कृति’ जीवंत रखने की है अपील : पद्मश्री मुकुंद नायक

पद्मश्री मुकुंद नायक कहते हैं कि नेपाल, बांग्लादेश, भूटान के आदिवासी समाज और झारखंड से गये लोगों ने अखरा संस्कृति को आंशिक रूप से अब भी जिंदा रखा है। इसे पुनर्जीवित करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘अखरा’ प्रत्येक गांव का सामाजिक केंद्र होता है। समाज रूपी पेड़ की जड़ उसकी संस्कृति है। जिसे हमारे पूर्वजों ने काफी परिश्रम से सींचा है।

मुकुंद नायक युवाओं से अपील करते हुए कहते है कि-” आप शिक्षित हो, पढ़-लिखकर कर तरक्की भी करें, जीवन के बड़े आयाम तय करें, लेकिन अपनी संस्कृति से जरूर जुड़े रहे। ‘अखरा संस्कृति’ हमारी पहचान, हमारा गौरव, हमारा अस्तित्व है। इसलिए अखरा बचाओ, झारखंड सजाओ और भारत बढ़ाओ। 

 

 

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