आप की बात: महिला हिंसा पर योजनाओं की स्थिति- उषा

Aap ki baat

झारखण्ड में महिलाओं के विरूद्ध हिंसा की रोकथाम के लिए सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की वास्तविकता

दूसरे चरण के लॉकडाउन के हटने के बाद, रांची जागोरी टीम के द्वारा, रांची शहर में हिंसा-आधारित सरकारी योजनाओं की वास्तविक स्थिति का आकलन करने के लिए जुलाई अगस्त 2021 में एक छोटा सा सर्वेक्षण किया गया। यद्यपि यह योजनाओं का सम्पूर्ण मूल्यांकन नहीं था फिर भी, घरातल पर उनकी क्रियान्वयन की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।

महिला – हिंसा आधारित सरकार के प्रमुख योजनाओं की वास्तविक स्थिति

निर्भया फंड

प्रायः महिला हिंसा आधारित योजनाओं को बहुत ही आसानी से बजट का आवंटन हो जाता है परन्तु ये योजनाएं दिशा-निर्देशों की जटिलता या प्रशासन में उत्तरदायित्वता एवं विभिन्न प्रतिनिधियों में तारतम्य की कमी के कारण इनकी पहुँच धरातल तक कमतर ही हो पाती है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण निर्भया फंड है। शुरूआत से ही इस योजना को केन्द्र सरकार के द्वारा उदार रूप से राशि का आवंटन होता रहा है। केन्द्र सरकार के बजट बुक में या महिला बाल विकास मंत्रालय के वेबसाइड पर इस योजना को अब तक आंवटित कुल राशि एवं राशि के राज्यवार वितरण का सम्पूर्ण विवरण उपलब्ध है। यह आश्चर्यजनक ही है कि निर्भया फंड के तहत झारखण्ड को आवंटित राशि या व्यय के विवरण के बारे में झारखण्ड के किसी भी स्त्रोत (बजट या वेबसाइड) पर जानकारी उपलब्ध नहीं है।

महिला हेल्पलाइन नम्बर ‘181’

झारखण्ड सरकार के आउटकम बजट के अनुसार, महिला हेल्पलाइन नम्बर 181 राज्य के सभी जिलों में चालु है। दरअसल, इस योजना को कई वर्षों से राशि आवंटित की जा रही है (झारखण्ड बजट) परन्तु जागोरी टीम को कभी यह नम्बर कार्यरत नहीं मिला।

महिला थाना रांची

यह आश्चर्यजनक था कि सभी केस एफ.आई.आर दर्ज करवाने के बजाय समझौते के लिए आये थे या फिर इस तरह से प्रत्यापित कर दिए गए थे। टीम को थाना को उपलब्ध आंतरिक संसाधनों एवं प्रतिदिन के केसो की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, सरसरी निगाह से देखने पर भी मानव संसाधन, आधारभूत संरचनाओं एवं आवश्यक संसाधनों की कमी प्रत्यक्षतः सत्यापित थी । यद्यपि महिला थाना के विरूद्ध शिकायतों को अनसुना करने, देर से सुनवाई करने एवं बुरा व्यवहार करने की शिकायतें बहुत आम हैं।

नारी निकेतन

यद्यपि सरकार के द्वारा यह प्रावधानित है कि सभी जिलों में एक नारी निकेतन और एक किशोरी निकेतन होना चाहिए। अब तक प्राप्त सूचना के अनुसार झारखण्ड राज्य में सिर्फ रांची जिले में ही ये संस्थाएं कार्यरत है जब टीम ने नारी निकेतन का भ्रमण किया तब यह एक इकलौता संस्थान भी बन्द होने के कागार पर था। पुनर्वास केन्द्र को पिछले दो वर्षों से कोई राशि नहीं मिली है। जिसके कारण पीडितों के नामांकन को बंद कर दिया गया है। यद्यपि न सिर्फ प्रशासन, पुलिस, नेताओं की ओर से भी आवेदन आते रहते है। देखभालकर्ता की माने तो कोविड काल में आवेदनों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। संस्थान के भविष्य के बारे में अनिश्चतता जारी है क्यों कि कोई भी इस बारे में अधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं हुई है।

वन स्टॉप सखी सेन्टर

क्योंकि केन्द्र में एक भी पीड़िता नहीं थी। यद्यपि कर्मचारियों ने सीमित समय में कार्यरत होने की बात कही परन्तु केन्द्र के अवलोकन से ऐसा कुछ भी लग नहीं रहा था। जल्द ही इस कथन का भी सत्यापन हो गया। अप्रैल 2022 में जब टीम ने लातेहार की एक पीड़िता का नामांकन रांची सखी सेन्टर में करवाना चाहा तो उन्होंने नामांकन न लेने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाए और अन्ततः इन्कार कर दिया। उन्होनें पीड़िता को लातेहार सखी सेन्टर भेजने की बात कही जब टीम ने लातेहार सखी सेन्टर से बात की तो उन्होने बताया कि यह अब तक शुरू नहीं हो पाया है। जब कि अधिकारिक रूप से सभी 24 सखी सेन्टरों को कार्यरत दर्शाया जाता है। पीड़िता वापस घर जाने की बजाय आत्महत्या करने के लिए तैयार थी। अन्ततः महिला और उसके दोनों बच्चों को एक उच्चस्तरीय सरकारी अधिकारी के दो दिनों के अनुनय के बाद रामगढ़ स्थित स्वाधार गृह में नामांकित किया जा सका। यदि रांची के सखी सेन्टर के ऐसे हालात है, तो अन्य जिलों में इनके क्रियान्वयन की स्थिति का अन्दाजा स्वतः लगाया जा सकता है।

उज्जवला पुर्नवास केन्द्र

इस योजना की शुरूआत भारत में वर्ष 2012 में की गई थी जिसमें हर अनुमण्डल में एक विशिष्ट पुर्नवास गृह की स्थापना  का प्रावधान हैं, जहां मानव तस्करी की शिकार महिलाओं के लिए अस्थायी पुर्नवास की व्यवस्था की जाती है। जबकि झारखण्ड में इस योजना की शुरूआत अक्टूबर 2020 में की गई। महिला बाल विकास मंत्रालय द्वारा जारी सूची (जून 2021) के अनुसार, झारखण्ड में दो उज्जवला पुर्नवास केन्द्र एक हजारीबाग एवं एक डाल्टनगंज में स्थापित है। दोनों ही पुर्नवास केन्द्र विषम परिस्थितियों में संस्था के क्रेडिट और आस- पास के दयालु लोगों की सहायता से चल रहें हैं, क्योंकि स्थापना के लगभग डेढ़ वर्षों में उन्हें सिर्फ एक बार आवंटित बजट की आधी राशि ही मिली है।

स्वाधार गृह

स्वाधर गृह के गाइडलाइन्स के अनुसार, हर जिले में एक स्वाधार गृह की स्थापना होनी चाहिए जहाँ हिंसा की शिकार महिलाओं को अस्थायी आश्रय की सुविधा दी जाती है। झारखण्ड में अभी तक सिर्फ पाँच ही स्वाधर गृह स्वीकृत हुए है। हाल के वर्षों में केन्द्र के द्वारा इस योजना को राशि आवंटन में गिरावट की गई है जिसे झारखण्ड सरकार खर्च भी नहीं कर पा रही है। जबकि रामगढ़ स्थित स्वाधार गृह में तय नम्बर ( 30 ) से ज्यादा पीड़ित नामांकित थे।

उषा कुमारी

प्रशिक्षु, जागोरी, रांची

 

Disclaimer: उपरोक्त लेख स्वैच्छिक रूप भेजी गई है। वर्णित तथ्यों और मौलिकता के संबंध में खबर सेल कोई पुष्टि नहीं करता है। 

 

 

 

 

 

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