आप की बात: पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक हैं तितलियां – रूपेश

Aap ki baat

Aap ki baat titaliyaan by rupesh

 

तितलियाँ (बटरफ्लाई और मॉथ) रंग-बिरंगी और आकर्षक होने के साथ-साथ जैव रासायनिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक है। ये पर्यावरण के जैविक तथा अजैविक घटकों में संतुलन स्थापित करती हैं। यद्यपि कीटनाशक, पीड़कनाशक और प्रदूषण द्वारा इनकी संख्या घटती जा रही है। भारत  में पाई जानेवाली तितलियों की प्रजाति मोनार्क बटरफ्लाई, स्वेलो टेल बटरफ्लाई,  टाइगर मिल्कवीड बटरफ्लाई, छोटी नीली बटरफ्लाई, ब्लू मोर्मन बटरफ्लाई आज विलुप्ति की कगार पर हैं। पर्यावरण संतुलन के लिए इन तितलियों का संरक्षण अति आवश्यक है।

परागण क्रिया में मददगार है ‘तितलियां’

किसी पौधे के पराग कणों का स्थानांतरण परागकोष से वर्तिकाग्र तक होता है। इसके निषेचन के पश्चात फल तथा बीज का उत्पादन होता है। ऐसा माना जाता है कि फसलों का एक तिहाई उपभोग प्राकृतिक परागण पर निर्भर होता है। तितलियां पौधों में परागण क्रिया में सर्वाधिक मददगार होती है। परागण नहीं होने पर फल-फूल की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच सकती है फसल उत्पादन तथा अनाज पर भी संकट आ सकता है। इसलिए इन्हें परागणकर्ता भी कहा जाता है।

तितलियों की और भी है खासियतें

तितलियां पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जहां ये कीटभक्षी (छिपकली, मकड़ी, पक्षी) के लिए भोजन है। वहीं तितलियों का लार्वा, कैटरपिलर, सड़े गले फलों एवं फूलों के रस चूस कर गंदगी साफ करते हैं। तितलियां पारितंत्र की सूचक होती हैं। ये एफिड्स (एक प्रकार का हानिकारक कीट) को खाकर प्रदूषण तथा प्राकृतिक पीड़क को नियंत्रित करती है। ये कार्बन डाइऑक्साइड गैस को ग्रहण कर वायु का शुद्धिकरण करती है। अतः मनुष्य इन तितलियों का कर्जदार है।

इनका संरक्षण है बेहद जरूरी

इन तितलियों का संरक्षण जागरुकता द्वारा की जा सकती है। ये केवल रंग-बिरंगी तथा आकर्षक ही नहीं होती है, बल्कि ये पा‌रितंत्र के मुख्य घटक है। तितली- पादप समन्वय द्वारा पारितंत्र की रचना, कार्य तथा प्रबंधन को समझा जा सकता है। यद्यपि कीटनाशक, पीडकनाशक, प्रदूषण द्वारा इनकी संख्या घटती जा रही है। तितलियों का संरक्षण कर पर्यावरण संतुलित की जा सकती है।

तितलियों का अस्तित्व बचाने में दें योगदान

तितलियां रंग बिरंगे फूलों की ओर आकर्षित होती है। इनमें लाल, नीला, पीला रंग उन्हें आकर्षित करती है। बागवानी/ रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधे लगाकर इनके संरक्षण में सहयोग किया जा सकता है। बटरफ्लाई गार्डन और बटरफ्लाई फार्मिंग और हरा भरा प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराकर तितलियों की  प्रजातियों को संरक्षित किया जा सकता है। साथ ही फसलों में कीटनाशी रसायन तथा पीड़कनाशी रसायनों का कम उपयोग कर इन्हें बचाने में हम सभी योगदान दे सकते हैं।

संरक्षण के लिए इन दो राज्यों ने की है शानदार पहल

भारत में महाराष्ट्र प्रथम राज्य है, जिसने अपना राजकीय कीट घोषित किया है। इस राजकीय कीट का नाम – ‘ब्लू मॉर्मन’ है। यह बटरफ्लाई की प्रजाति है। वहीं उत्तराखंड का संभावित राजकीट है: कॉमन पिकॉक बटरफ्लाई। इसके अलावा उत्तराखंड में दो बटरफ्लाई पार्क भी बनाये गए हैं। एक बटरफ्लाई पार्क गढ़वाल (देहरादून) और दूसरा कूमॉन (नैनीताल) में है।

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रुपेश कुमार विश्वकर्मा
कीट विज्ञान विशेषज्ञ सह विज्ञान शिक्षक

 

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