रामगढ़: फागुन के साथ ही पलाश के पेड़ खूबसूरत फूलों से भर गये है। हरे भरे पेड़ों की कतार के बीच जगमगाती रौशनी सरीखे केसरिया फूल इन दिनों मदमस्त बहार का अनूठा एहसास करा रहे हैं। फागुन के महीने में झारखंड का राजकीय फूल पलाश राज्य की हरी-भरी खूबसूरती को कई गुणा बढ़ा देते हैं।
बात औधोगिक जिले रामगढ़ की करें तो पलाश की अहमियत यहां और भी बढ़ जाती है। यहां वर्ष भर प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों की हरियाली पर धूल-गर्द की मटमैली परत सी चढ़ी रहती है। हरियाली का सुखद नजारा बसरात में ही दिख पाता है। जबकि फागुन के महीने में मटमैली हरियाली के बीच चटकदार केसरिया रंग के फूलों लदे पलाश के पेड़ प्रकृति के अनुपम उपहार सरीखे प्रतीत होते हैं। इन दिनों यह नजारा कमोबेश हर जगह देखा जा रहा है। पलाश के फूल रंगीन वातावरण में फागुन के बहार की आलौकिक अनुभूति करा रहे हैं।
पुराना पलाश और नई होली
होली के दिन एक दूसरे को पलाश के फूलों से बने रंग लगाने की परंपरा पुरानी रही है। जो चार-पांच दशकों से लगभग लुप्त सी हो गई। पेड़ से फूल तोड़कर रंग बनाने की मशक्कत का वह दौर पीछे छूट चुका है। बदलते परिवेश में केमिकल से बने रंगों का प्रचलन आ गया है। जहां पलाश के फूल त्वचा के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं, वहीं केमिकल युक्त रंग त्वचा के लिए हानिकारक हो सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रकृति ने जीवन को उत्सव की तरह जीने के लिए हमें हर उपयोगी चीजें मुहैया कराई है, जबकि आधुनिकता के भागमभाग में हम इनकी अनदेखी कर उत्सवों का स्वरूप बदलते चले जा रहे हैं।
बेहद खास है पलाश
पलाश के फूल, बीज, पत्ते और छाल का आयुर्वेदिक महत्त्व है। पलाश के फूल में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जबकि पत्तों में एंटीसेप्टिक और बीज में एंटीवर्म गुण पाए जाते हैं। पलाश का उपयोग त्वचा संबंधी समस्याओं में आराम देता है, साथ ही यह कई तरह के संक्रमण और बिमारियों में कारगर बताया जाता है। पलाश का संबंध सिर्फ खूबसूरती से नहीं बल्कि यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी बहुपयोगी है। पलाश फागुन की बहार का प्रतीक और बहती बयार का साथी है, पलाश फागुन के उत्सव में हम सभी का सहभागी है।