सावित्रीबाई फुले की जयंती पर विशेष
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रूढ़िवादी विचारधाराओं को तोड़ भारतीय समाज में नई जागृति लानेवाली महिलाओं में विशेष नाम है… सावित्रीबाई फुले।
भारत की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले ने 1852 में पहली बालिका विद्यालय की स्थापना कर बच्चियों की पढ़ाई को एक दिशा दी। महिलाओं को समाज में पुरुषों के बराबर शिक्षा और अधिकार के साथ जीवन जीने का मार्ग प्रसस्त कर दिया।
वहीं महिलाओं की शिक्षा के अलावा उन्होंने विधवाओं के सम्मानपूर्वक जीवन के लिए भी बड़ा संघर्ष किया। कठिनाइयों के बावजूद वे डटीं रहीं। समाज की रूढ़िवादी सोच विरुद्ध अकेली खड़ी सावित्रीबाई फुले की विचारधारा का पलड़ा भारी होता चला गया। विधवाओं को भेदभाव भरे जीवन से मुक्ति मिलने लगी। इसके साथ-साथ बाल विवाह, छुआछुत सहित अन्य कुरितियों को मिटाने के लिए उन्होंने कई काम किए।
कहना गलत नहीं होगा कि सावित्रीबाई फुले के त्याग और परिश्रम से देश में नारी शक्ति को पहचान मिली है। आज देश में शिक्षित महिलाएं न सिर्फ देश और समाज को दिशा दें रही हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपने अमूल्य योगदान से संपूर्ण मानवजाति को सुशोभित कर रही हैं।
सावित्रीबाई की विचारधारा ने साबित कर दिया शिक्षा सभी के लिए जरूरी है और महिलाओं को भी पुरूषों की भांति सम्मान और समानता के साथ जीवन जीने का अधिकार है।
भारत में महिलाओं की शिक्षा का अलख जगानेवाली पहली महिला शिक्षिका सह समाजसेवी सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ। नौ वर्ष की उम्र में उनका विवाह ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ हुआ। मानवतावादी क्रांतिकारी सोच के साथ दोनों दंपति ने कुल 18 बालिका विद्यालयों की स्थापना की।
सावित्रीबाई फुले अपनी मराठी रचनाओं से भी समाज को जागृत करने का प्रयास करती रहीं। ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने समाज में महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।