मध्यकालीन पाषाण युग के शिलालेख करते हैं आकर्षित
हजारीबाग: जिले का ‘इस्को पहाड़’ थोड़ा दुर्गम भी है और दुर्लभ भी। कई रहस्यों को संजोए यह पहाड़ प्राचीन सभ्यता और इतिहास में दिलचस्पी रखनेवालों के लिए खास जगह है।
बड़कागांव प्रखंड के इस्को गांव के निकट यह पहाड़ स्थित है। पहाड़ में एक ओर बड़ा सा खोह दिखता है। जिसके अंदर छोटे-बड़े चट्टानों से होकर जाना पड़ता है। यहां सावधानी बरतनी पड़ती है।
खोह के भीतर एक स्थान पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लोग पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं इसके कुछ दूरी पर एक बेहद संकीर्ण और अंधकारमय गुफा है। जिसमें कुछ कदम भीतर जाने के बाद सामने कुछ नजर नहीं आता। मोबाईल या टार्च की रौशनी भी यहां नाकाफी प्रतीत होती है। कुछ आगे बढ़ने के बाद संकीर्णता के कारण अंदर जाना और मुश्किल हो जाता है।
बताया जाता है कि यह गुफा पहाड़ के दूसरी छोर पर जाती थी। दूसरा छोर कालांतर में बंद होता गया। वहीं दूसरी छोर पर दो विशाल चट्टानों के बीच एक धारी सी ही दिखती है। इस जगह को गुफा का द्वार बताया जाता है। इस धारी के ही निकट पहाड़ पर बेहद प्राचीन शिलालेख दिखते हैं।
दिवारनुमा चट्टानों पर अजीबोगरीब लेकिन अनूठी आकृतियां उकेरी हुई मिलती हैं। जहां इंसान, पशु-पक्षी सहित कई अबूझ कलाकृतियों को निहारना और समझने की कोशिश करना वाकई अद्भुत एहसास करा जाता है।
यह शिलालेख मध्यकालीन पाषाण कालीन युग के बताये जाते है। कहा जाता है कि इन गुफाओं में लोग रहते थे। वहीं कुछेक स्थानीय लोग इसे प्राचीन काल के एक राजा कर्ण सिंह के समय का भी बताते हैं। उनके काल में विशेष प्रायोजन के दौरान दिवारनुमा चट्टान पर आकृतियां बनाये जाने की बातें भी कही जाती हैं। इस्को पहाड़ की गुफाओं और यहां के शिलालेख के संदर्भ में रहस्य आज भी बना हुआ है।
इधर, इस ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचता हुआ दिख रहा है। असामाजिक तत्वों द्वारा शिलालेखों को बिगाड़ने के निशान भी देखे जा सकते हैं। इस धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में ठोस पहल करने की जरूरत है। हालांकि इस्को पहाड़ क्षेत्र को पर्यटकों के लिहाज विकसित करने की थोड़ी कवायद जरूर दिखती है। लेकिन शिलालेखों के संरक्षण के कोई इंतजाम फिलहाल नहीं दिख रहे हैं।
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