जलवायु परिवर्तन से होते नुकसान पर गंभीर होने की जरूरत: डॉ. एस. चंद्रशेखर
मुंबई: आईआईटी बॉम्बे में शुक्रवार को दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक (आईसीआरसी-2023) के उद्घाटन अवसर पर भारत का जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम जारी किया गया।
इस अवसर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. एस. चंद्रशेखर ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान ने पहले से ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है और इस संदर्भ में हमारी कार्रवाई में देरी हुई है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान मानव व्यवहार में परिवर्तन होने के कारण पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव के हमारे अनुभवों के जरिये किसी भी स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक सबक लिया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि जलवायु विज्ञान के आसपास की बाह्य गतिविधियों से जलवायु चक्र प्रभावित होता है। उन्होंने कहा, ऐसी स्थिति में यह वैज्ञानिकों का कर्तव्य बन जाता है कि वे उन क्षेत्रों की पहचान करें, जो जलवायु पर सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं और उन्हें कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
वहीं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने जल संसाधन, अत्यधिक वर्षा, भीषण गर्मी की स्थिति और समुद्री लहरों जैसे विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए नीतिगत निर्णय लेने के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इन सभी चिंताओं को स्वीकार करते हुए इस सम्मेलन का उद्देश्य ऐसी कई महत्वपूर्ण सिफारिशों को जारी करना है, जो पूरे देश को लाभान्वित करेंगी।
देश और दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों के 200 से अधिक जलवायु वैज्ञानिक, छात्र, विशेषज्ञ तथा नीति निर्माता अंतर्राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान बैठक (आईसीआरसी-2023) में भाग ले रहे हैं, ताकि जलवायु अनुसंधान के क्षेत्र में हुई भारत की हालिया प्रगति और 2030 के लिए इसकी कार्यसूची व दृष्टिकोण पर चर्चा की जा सके।
वहीं बताया जाता है कि भारत का जलवायु अनुंसधान कार्यक्रम वर्ष 2030 और उसके बाद के समय में जलवायु परिवर्तन को समझने तथा उससे संबंधित मुद्दों को हल करने की दिशा में राष्ट्रीय प्रयासों के समन्वय के लिए भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।